आत्महत्या और समाज

 

समझाना आसान है, संभलना बहुत मुश्किल।  हर आत्महत्या के बाद सुनते है की किसी को दिक्कत हो तो शेयर करना चाहिए पर इंसान शेयर करे तो किससे। यहाँ हरी राम नाई ज़्यादा है और सुनने वाले कम। और समाज, समाज को कंधा देना आता है पर सिर्फ़ लाश को। ज़िंदा लोग समाज को अपने अस्तित्व के लिए घातक लगते है तो अपने व्यवहार, विचार, रीति, नीति इत्यादि से ऐसे लोगों को तोड़ कर समाज चलती फिरती ज़िंदा लाशें बनने पर मजबूर कर देता है।  और फिर ये ज़िंदा लाशें zombies  के जैसे आगे वाली पौध को ऐसे ही बंजर और पंगु कैसे रखा जाए उस पर ही ध्यान केंद्रित रखती है।

दरअसल, हम आर्थिक रूप से अमेरिका हो जाना चाहते है लेकिन संसाधन भारत के ही है हमारे पास और सामाजिक रूप से अफ़्रीका की किसी आदिवासी बस्ती वाले रीति रिवाज लेके ढो रहे है और सांस्कृतिक रूप से हमे यूरोप जैसा खुलापन चाहिए जिनमे कहीं भी तारतम्यता नहीं है। दिक्कत ये है कि जहाँ भी इनमे से एक पहिया डगमगाया, सामाजिक पतन अनिवार्य है।

कोई भी इंसान इनमें से किसी एक के कमजोर होने पर तो संभल सकता है पर जैसे ही समस्याओं की कॉकटेल बनती है फिर उसे स्वर्ग नरक के बोझ से परे स्वयं को खत्म करना ज़्यादा आसान लगता है। कितनी घातक बात है, एक चलते फिरते इंसान को मजबूर होकर ख़ुद को ख़त्म करने की ठान लेना, तमाम सांसारिक सुखों और रिश्तों से दूर जाने की सोच लेना, तमाम बदनामी और इज़्ज़त के डर के बगैर सोच पाने की।  जितनी हिम्मत करके आत्महत्या कर लेता है उतनी हिम्मत ज़िंदा करते कर ले तो शायद 90% सुसाइड होंगे ही नहीं। पर नहीं होती हिम्मत, क्योंकि समाज और घर परिवार ही इस लायक नहीं छोड़ते, वो सिर्फ अपने फायदे और सहूलियत के हिसाब से समझाते है कि उनको कहीं भी ज़्यादा जोर नहीं पड़े। समाज घेरता नहीं है, गला घोंटता है। और परिवार, चाहता तो भला ही है पर इन चार लोग, जो समाज होने का दावा करते है, उनके आगे सिर नहीं उठा पता।  परेशान आदमी को दिक्कत समझ की नहीं है, समझदार है तभी परेशान भी है और ज़िंदा भी। दिक्कत अकेले चीजें सही करने में है, मैनेज नहीं हो पा रहा है तभी वो आप तक आने की हिम्मत कर पा रहा है। बस इतना समझ लीजिए, अपने आसपास में इतने लोग डिप्रेशन से जूझ रहे है जितना हम सोच भी नहीं सकते, बता इसलिए नहीं पाते क्योंकि चार लोगों में बेठकर हम उन्ही की दिक्कत का मजाक उड़ाएंगे।

जिंदा रहना बहुत महत्वपूर्ण है। आपका जिंदा रहना बहुत महत्वपूर्ण है। ये आप ही हैं जो आपकी जिंदगी में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होने चाहिये।

Comments

Popular posts from this blog

ज़िंदा रहें।

क्रिकेट या आत्मसम्मान