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आत्महत्या और समाज

  समझाना आसान है , संभलना बहुत मुश्किल।   हर आत्महत्या के बाद सुनते है की किसी को दिक्कत हो तो शेयर करना चाहिए पर इंसान शेयर करे तो किससे। यहाँ हरी राम नाई ज़्यादा है और सुनने वाले कम। और समाज , समाज को कंधा देना आता है पर सिर्फ़ लाश को। ज़िंदा लोग समाज को अपने अस्तित्व के लिए घातक लगते है तो अपने व्यवहार , विचार , रीति , नीति इत्यादि से ऐसे लोगों को तोड़ कर समाज चलती फिरती ज़िंदा लाशें बनने पर मजबूर कर देता है।   और फिर ये ज़िंदा लाशें zombies   के जैसे आगे वाली पौध को ऐसे ही बंजर और पंगु कैसे रखा जाए उस पर ही ध्यान केंद्रित रखती है। दरअसल , हम आर्थिक रूप से अमेरिका हो जाना चाहते है लेकिन संसाधन भारत के ही है हमारे पास और सामाजिक रूप से अफ़्रीका की किसी आदिवासी बस्ती वाले रीति रिवाज लेके ढो रहे है और सांस्कृतिक रूप से हमे यूरोप जैसा खुलापन चाहिए जिनमे कहीं भी तारतम्यता नहीं है। दिक्कत ये है कि जहाँ भी इनमे से एक पहिया डगमगाया , सामाजिक पतन अनिवार्य है। कोई भी इंसान इनमें से किसी एक के कमजोर होने पर तो संभल सकता है पर जैसे ही समस्याओं की कॉकटेल बनती...

क्रिकेट या आत्मसम्मान

  क्रिकेट या आत्मसम्मान साल 2004 । शांति बहाली की कोशिशों के बीच भारत पाकिस्तान सीरीज, जिसे अपार स्नेह मिला। और दो प्रतिद्वंदी टीमों ने बढ़िया क्रिकेट खेला और सबने सराहा भी और ये पहली बार था जब दूरदर्शन ने भारत से बाहर द्विपक्षीय सीरीज को लाइव कवरेज दी होगी या पहले दी भी होगी तो क्योंकि गाँव कस्बों तक टीवी अभी पहुँच ही रहा था तो उत्साह इस बारी ज्यादा ही था ।  तब तक क्रिकेट सिर्फ मनोरंजन और रिश्ते सुधारने का जरिया ही हुआ करता था। खेर पड़ोसी मुल्क के साथ रिश्ते सुधारने मे क्रिकेट काम नहीं ही आया। याद कीजिए 2003 का वर्ल्ड कप, भारत के फाइनल में पहुँचने और पाकिस्तान को हराने के अलावा दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुई थी। केन्या का सेमाइफाइनल में पहुंचना और जिम्बाब्वे का क्वार्टर फाइनल मे पहुचना । और उनके पीछे मैन कारण था इंग्लैंड और न्यूज़ीलैंड का केन्या और जिम्बाब्वे को walkover देना और वहाँ खेलने ना जाना। नतीजा, मजबूत टीमे बाहर हुई और थोड़ी कमजोर टीमे सेमीफाइनल खेल गई। साल 2025, पहलगाम अटैक, ऑपरेशन सिंदूर और नतीजा एक बड़ी महत्वपूर्ण डेक्लरैशन, खून और पानी साथ नहीं चल सकते। मतलब हमने 19...