क्रिकेट या आत्मसम्मान

 

क्रिकेट या आत्मसम्मान

साल 2004 । शांति बहाली की कोशिशों के बीच भारत पाकिस्तान सीरीज, जिसे अपार स्नेह मिला। और दो प्रतिद्वंदी टीमों ने बढ़िया क्रिकेट खेला और सबने सराहा भी और ये पहली बार था जब दूरदर्शन ने भारत से बाहर द्विपक्षीय सीरीज को लाइव कवरेज दी होगी या पहले दी भी होगी तो क्योंकि गाँव कस्बों तक टीवी अभी पहुँच ही रहा था तो उत्साह इस बारी ज्यादा ही था । तब तक क्रिकेट सिर्फ मनोरंजन और रिश्ते सुधारने का जरिया ही हुआ करता था। खेर पड़ोसी मुल्क के साथ रिश्ते सुधारने मे क्रिकेट काम नहीं ही आया।

याद कीजिए 2003 का वर्ल्ड कप, भारत के फाइनल में पहुँचने और पाकिस्तान को हराने के अलावा दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुई थी। केन्या का सेमाइफाइनल में पहुंचना और जिम्बाब्वे का क्वार्टर फाइनल मे पहुचना । और उनके पीछे मैन कारण था इंग्लैंड और न्यूज़ीलैंड का केन्या और जिम्बाब्वे को walkover देना और वहाँ खेलने ना जाना। नतीजा, मजबूत टीमे बाहर हुई और थोड़ी कमजोर टीमे सेमीफाइनल खेल गई।

साल 2025, पहलगाम अटैक, ऑपरेशन सिंदूर और नतीजा एक बड़ी महत्वपूर्ण डेक्लरैशन, खून और पानी साथ नहीं चल सकते। मतलब हमने 1960 मे किए हुए समझौते को तोड़कर एक मजबूत संदेश दिया। इससे पहले भी याद कीजिए, 2016 मे उरी अटैक के बाद से पाकिस्तानी कलाकारों को वापस भेज गया और आज तक उनकी एंट्री यहाँ हुई नहीं है। उम्मीद थी, अब पाकिस्तान से किसी तरह के ताल्लुक नहीं ही रखे जाएंगे और एशिया कप तो छोड़ो हमे वर्ल्ड कप में भी walkover देने मे दिक्कत नहीं होगी।

लेकिन, इस बार हुआ कुछ उल्टा ही, क्रिकेट अब सिर्फ मनोरंजन नहीं रहा।

जिस बीसीसीआई की नेट वर्थ 2004 मे 199 करोड़ थी वो अब 2025 में 18700 करोड़ हो चुकी। अकेले 2024-25 मे मुनाफा 9741 करोड़ रहा है। ये समझ लीजिए की टिकट बेचकर इतना revenue नहीं ही कमाया जा सकता है, ये कमाया जा रहा है हमारे ईमोशन बेचकर। अब हर गेम देश और संबंधों के लिए नहीं इसी मुनाफे को और बढ़ाने के लिए खेला जा रहा और उनके सबसे बड़े मार्केट है हम ही लोग। किसी ने बहुत सही बात कही है, अगर आपको कोई सर्विस फ्री में मिल रही है, तो आप कस्टमर नहीं आप ही प्रोडक्ट है । क्रिकेट को हम viewers ने देख देखकर इतना बड़ा बनाया है की administrators को अब Human values और emotions  समझ नहीं ही आते है । उन्हे ये लगता है कि राष्ट्रवाद की चासनी को अपनी तरीके से घोला और परोसा जा सकता है। और शायद सही भी लगता है, इतने हो हल्ले और विरोध के बावजूद बीसीसीआई की तरफ से एक clarification तक नहीं आया है। मुझे नहीं पता कि 20000 करोड़ की नेट वर्थ में ये मैच कितनी वर्थ ऐड करेगा पर ये जिद इस एक मैच से कहीं आगे की है। ये जिद है perceptions को अपने हिसाब से सेट करने की। वरना ये लॉजिक तो नहीं दिया जाता कि इंटरनेशनल स्पोर्ट्स प्रोटोकॉल का पालन करना जरूरी होता है, नियत होती है तब वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में हुई संधि को तोड़ने की घोषणा चुनावी रैली में भी हो जाती है ये तो फिर भी पानी से बहुत कम जरूरी बात थी।  

इंग्लैंड और न्यूजीलेंड की सरकारों ने एक वर्ल्ड कप को त्यागना स्वीकार किया पर यहाँ बोर्ड को एक irrelevant एशिया कप का एक मैच छोड़ना तक जरूरी नहीं लगा। अगर इंग्लैंड उस साल वर्ल्ड कप के सेमाइफाइनल में पहुँच भी जाता तो किसी को फरक नहीं पड़ता पर उसने walkover देकर अपनी रीढ़ मजबूत होने का संदेश दिया। जिस इंटरनेशनल प्रोटोकॉल की बात की जा रही है, बीसीसीआई अगर चाहे तो आईसीसी से पाकिस्तान को बाहर करने का प्रस्ताव 1 मिनट मे पास करवा दे इतनी ताकत है लेकिन दिक्कत नियत और viewership की ही है। दुनिया में बहुत  example है जब athletes ने ओलिंपिक्स मेडल को ठुकरा कर अपने देश को ऊपर रखा लेकिन यहाँ खेल ही अलग है।

भारत पाकिस्तान के बीच ना तो पहली बार मैच हो रहा है और ना ही ये आखिरी है। कई देखे हुए मैच याद भी नहीं होंगे, सिर्फ हाइप के कारण कई मैच देख लिए होंगे और आगे भी देखते रहेंगे। समय है इस बार बोर्ड को आईना दिखाने का, अपनी वर्थ बताने का, अपनी मेरुरज्जु सीधी होने का, अपने अस्तित्व का एहसास करवाने का। देश के आत्मसम्मान से बड़ा न तो कोई खेल हो सकता है और ना ही कोई मेडल- वर्ल्ड कप। पहलगाम पुलवामा उरी जैसे हमलों के बाद जिस राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाया गया उसी पर टिके रहकर अपने अस्तित्व का एहसास करवाने का। 2 मैच में viewership कम हो गई तो यही बोर्ड अपने फैसले संभलकर लेने लगेगा, paradigm शिफ्ट होने मे टाइम नहीं लगता ये तो फिर भी एक खेल है। जब तक मनोरंजन है तभी तक खेल है, जब भावनाओं से खेलना शुरू हो जाए तो इसी को मिट्टी मे मिलते बिल्कुल देर नहीं लगेगी।

जय हिन्द ।

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